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I am Brij Nath Srivastava
रथ इधर मोड़िये मेरी
यह वही गॉव है
यह वही गॉव है जिसमें हम बडे हुये थे
अपने पैरों पर खडे हुये थे
हवा गॉव की
रोटी और नदी का जल
सभी दिशायें
गाती उत्सव में मंगल
सबके मुख पीयूश नेह के घडे हुये थे
अपने पैरों खडे हुये थे
पश्चिम आया
पूरा बदल गया इंसान
शहरों ने गांवों
का तोड दिया सम्मान
एक डर
एक डर
पसरा हुआ है
हर जगह
कहाँ बैठें
कहाँ लेटें
कहाँ खोयें
कहाँ सोयें
नेह पथ
सँकरा हुआ है
हर जगह
हो खेत या
खलियान हो
जन भीड या
शमशान हो
आचरण
नखरा हुआ है